भारत के कार्यसंस्कृति संकट की पड़ताल••••आजकल की भारत की सामाजिक-आर्थिक बातचीत में एक विचित्र त्रासदी उभरकर सामने आ रही है, जिसे तीन वाक्यों में समझा जा सकता है:
😀1. आदमी के पास काम नहीं है। 😀2. काम के लिए आदमी नहीं मिल रहे। 😀3. जो आदमी काम के लिए रखे गए हैं, वो किसी काम के नहीं हैं।
यह तीनों वाक्य न केवल हमारे रोज़मर्रा के अनुभवों को प्रतिबिंबित करते हैं, बल्कि देश की कार्यसंस्कृति, शिक्षा प्रणाली, और रोजगार नीति की विफलता की त्रयी भी हैं।
1.✅आदमी के पास काम नहीं है – बेरोज़गारी की सच्चाई••••देश की युवा जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। हर वर्ष लाखों छात्र कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से डिग्रियाँ लेकर निकलते हैं, लेकिन उनके लिए नौकरी का उपयुक्त अवसर नहीं मिलता। सरकारी नौकरियों की संख्या सीमित है, और प्राइवेट सेक्टर में अनुभव और स्किल दोनों की मांग है। बेरोज़गारी केवल नौकरी की कमी नहीं है, बल्कि यह स्किल और मार्केट डिमांड के बीच के फासले की सजा है।
2.✅काम के लिए आदमी नहीं मिल रहे – स्किल गैप की त्रासदी••••दूसरी ओर उद्योगों, कारखानों और स्टार्टअप्स को मेहनती और प्रशिक्षित लोग नहीं मिलते।🌟किसान मजदूर नहीं मिल रहे 🌟होटल में शेफ नहीं मिल रहे 🌟फैक्ट्री में ऑपरेटर नहीं मिल रहे 🌟टेक कंपनियों को योग्य कोडर नहीं मिल रहे
|| ऐसा नहीं है कि लोग नहीं हैं — समस्या है कि लोगों में काम करने की लगन, कौशल और ज़िम्मेदारी की भावना की भारी कमी है। यह शिक्षा व्यवस्था की वह विफलता है जो डिग्री देती है, लेकिन दक्षता नहीं ||
3.✅काम के लिए रखे गए आदमी, किसी काम के नहीं हैं – कार्यसंस्कृति का पतन••••यह तीसरी समस्या सबसे खतरनाक है। नौकरी पा लेने के बाद न समय की कद्र है, न गुणवत्ता की। कामचोरी,अनुशासनहीनता, मोबाइल पर समय गँवाना, झूठ बोलना और जिम्मेदारी से बचना — ये आज की कॉर्पोरेट और सरकारी नौकरी दोनों में महामारी बन चुके हैं। काम करना कठिन नहीं है, लेकिन मेहनत से डरने वाले समाज में ईमानदारी और परिश्रम विलुप्त हो रहे हैं।
✓✓✓तो समाधान क्या है••••
1.✅शिक्षा को रोजगारोन्मुख बनाना••••सिर्फ BA, BCom, MA की डिग्रियों से पेट नहीं भरता। छात्रों को वोकेशनल ट्रेनिंग, डिजिटल स्किल्स, भाषा कौशल और व्यवहारिक शिक्षा दी जानी चाहिए।
2.✅काम की संस्कृति पैदा करनी होगी••••काम को पूजा कहने वाले देश में काम से भागने की मानसिकता खत्म करनी होगी। यह स्कूल से शुरू होकर घर और समाज तक जाना चाहिए।
3.✅श्रम का सम्मान अनिवार्य है••••हमने काम करने वाले को नीचा समझना शुरू कर दिया है। पंखा बनाने वाला इंजीनियर से छोटा नहीं है। कचरा उठाने वाला सफाईकर्मी समाज के लिए उतना ही ज़रूरी है जितना डॉक्टर।
4.✅योग्यता पर आधारित मूल्यांकन प्रणाली••••सरकारी और निजी क्षेत्र दोनों में काम करने वालों का मूल्यांकन निष्पक्ष हो। काम न करने वाले को निकाला जाए और मेहनती को बढ़ावा मिले।
✓✓✓आज की भारत की यह त्रिसंधि — बेरोज़गारी, स्किल गैप और कार्यसंस्कृति का पतन — एक गहरी चेतावनी है। अगर हमने अभी नहीं सुधारा, तो ‘जनसांख्यिकीय लाभ’ का सपना ‘जनसांख्यिकीय संकट’ बन जाएगा।